Saturday, 5 December 2020

जो पाया है उसके एवज में

मैं यू ही बडा नहीं हो गया
गली - गली की खाक छानी
तब जिंदगी की असलियत जानी
भूखा रहा
फुटपाथ पर सोया
जूठे बर्तन मांजे
सर पर बोझ ढोया
गालियाँ सुनी
दुत्कारा गया
हर पल लडा जिंदगी से
तब कहीं जाकर यह मेहरबान हुई

वक्त तो बदलता है
मेरा भी बदला
वह पहले जैसा फुटपाथी नहीं रहा
आज गद्देदार बिस्तर है
वह कभी-कभी चुभती है
जब फुटपाथ की याद आती है

आज भरपूर भोजन हैं
स्वादिष्ट व्यंजन की भरमार है
पर वह सूखी रोटी अभी भी याद है
ध्यान से देखता हूँ
तब सबसे पहले वहीं जेहन में आती है

आज नौकर - चाकर है
छोटे से लेकर बडा काम करने तक
जब किसी के कंधों पर चावल या गेहूं की बोरी दिखती है
हाथ में भरे थैले दिखते हैं
तब उसके चेहरे पर अपना अक्स दिखाई दे जाता है

अक्सर सोचता हूँ
कभी-कभी परेशान हो जाता हूँ
ऐसा क्यों होता है
मेरे साथ ही या औरों के

देखने वाले कुछ भी समझे
जो कुछ हूँ
वह आसानी से नहीं
हथेलियों को देखता हूँ
तब काम के निशान और कठोर लकीर जो पड गई
वह तो वैसे की वैसी ही है
जो पाया है उसके एवज में
न जाने कितने पापड बेले हैं
और जिंदगी पटरी पर आई है

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