Tuesday, 19 January 2021

यह खत ही तो था

वह खत ही तो था
जो हमारी तन्हाई का सहारा था
बातें होती थी खूब
दो - दो पन्नों की
तब भी जी नहीं भरता था
दिन में न जाने कितनी बार
फिर से देखती थी
पढती थी
बातें करती थी
मन ही मन मुस्कराती थी
शिकवे - शिकायते करती थी
लगता था खत नहीं
तुम ही सामने हो
समय का पलटा
जमाना वट्सअप का
जब चाहे तब बतियाओ
जितना चाहे उतना बतियाओ
फिर भी दो - चार वाक्य में सब बात खत्म
वह अनुभूति ही नहीं
जो उस खत में होती थी
उस डाकिये के इंतजार में होती थी
पन्ने पर पन्ने फाडे जाते थे
तब जाकर एक खत बनता था
लाल डिब्बे में डाल आने के बाद
दिल को क्या सुकून मिलता था
फिर प्रतीक्षा की घडी
उसमें ही समय बीत जाता था
दिन - सप्ताह पल क्षण भर में उडन छू हो जाता था
तब की बात ही कुछ और ही थी
उसका कारण यह खत ही तो था

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