Friday, 29 January 2021

तुम पुरूष हो शक्तिमान नहीं

मैं धुरी हूँ समाज की
समानता का अधिकार प्राप्त
वह भी कानून की किताब में
सच में मुझे बराबरी का दर्जा मिला
या उसके नाम पर ठगा गया
पहले घर ही संभालती थी
अब घर और दफ्तर दोनों की जिम्मेदारी
फिर भी मेरे कंधे नाजुक है
मैं ज्यादा भार नहीं उठा सकती
यह धारणा है जनमानस की
आज ही नहीं सदियों से यह मैं करते आई हूँ
घर और बाहर में तालमेल बिठाती आई हूँ
उस किसान की बीबी हूँ
जो उसके खाने से लेकर फसलों तक को सहेज कर रखती हूँ
उस मछुआरे की बीबी हूँ जो मछली साफ करने से लेकर बाजार में बेचने तक में सहयोग करती हूँ
उस मजदूर की बीबी हूँ जिसके बच्चे को पीछे बांध ईटों को ढोती हूँ
उस माली की बीबी हूँ जो फूलों को तोड़ने से लेकर उसकी माला पिरोने तक का काम करती हूँ
झाडू लगाने से लेकर दूध दुहने तक का काम
ऐसे न जाने कितने अनगिनत
तब भी मेरा मोल समझ न आया
मर्द समझता रहा
मैं ही सब संभालता हूँ
परिवार का भरण पोषण करता हूँ
मैं नगण्य हो गई
आज मैं दमखम के साथ निकली हूँ
पहले कभी जताया नहीं
आज जता रही हूँ
मैं तुम्हारे बराबर हूँ
मेरे बिना तुम बिल्कुल अधूरे हो
अर्द्धागिनी हूँ
यह सच है
इसे पूर्ण मन से स्वीकार करों
तुम्हारे भी कंधे इतने मजबूत नहीं
जो सारा बोझ अकेले उठा सको
मेरी महत्ता को स्वीकार करों
माना तुम पुरूष हो
पर शक्तिमान नहीं

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