वक्त बीतता गया
जिंदगी का हिसाब - किताब चलता रहा
कभी जोड़ा
कभी घटाया
कभी गुणा
कभी भाग
यह भी साथ-साथ चलता रहा
हर दिन नया
हर पल का हिसाब रखा
सब संचित कर मन - मस्तिष्क में
कितना भरा पडा है
क्या भूलूँ क्या याद करूँ
क्या छोडू क्या संभालू
बहुत कुछ बदला है
बदलता ही रह रहा है
हम भी तो बदलते ही गए
समय के साथ चलते गए
तब भी लगता है
कहीं कुछ छूट गया
कहीं कुछ कसक सी है
वह सुकून नहीं है
जो होना चाहिए
रोते हुए मुस्कराए हैं
कुछ छूटा तब कुछ मिला
कुछ अपने भी बिछुड गए
जिंदगी देकर खुशी मिली है
त्याग किया है तब हासिल हुआ है
हर चीज की कीमत चुकानी पड़ी है
इतना सस्ता और आसानी से कुछ भी नहीं मिला
तभी तो फिजा में उदासी छा जाती है
हंसी ओठों तक आकर रह जाती है
जिंदगी में लाटरी नहीं लगी
मेहनत किया है
तब यह मुकाम हासिल किया है
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Wednesday, 24 February 2021
मेहनत से मुकाम
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