Thursday, 25 February 2021

तब पछताना बेकार

बहुत बोलते हो तुम
हर बात पर झिडकते हो
गुस्सा तुम्हारी नाक पर
न आगे देखना
न पीछे देखना
न किसी की परवाह करना
जब आया तो उडेल देना
जैसे मैं कोई कचरे का ढेर हूँ
उडेलते जाओ
मैं इकठ्ठा करती जाऊं
जब यह ज्यादा हो जाएंगा
तब तो उसमें से भी संडाध आने लगेंगी
वह तो तब तक जब तक चुप
अगर मुंह खोल दूं
तब तुम्हारी औकात पता चल जाएंगी
चुप हूँ तभी भलाई तुम्हारी
चुप रहना आता है
तब चुप कराना भी आता है
वह छोड दिया
जाने दो
तब ही सब सुरलित
सबका जीवन भी संतुलित
नहीं तो भूचाल आ जाएंगा
सब संजोया और सजाया व्यर्थ हो जाएंगा
जो मैं नहीं चाहती
जो तुम भी नहीं चाहोंगे
तब जरा कंट्रोल करों
अपनी जबान पर लगाम रखो
नहीं तो सब बेकाबू हो जाएंगा
तब पछताना बेकार

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