Wednesday, 3 March 2021

बेटी का बाप

हर पिता चाहता है
उसके बच्चे कुछ बने
बडे हो
पढे - लिखे
कुछ अलग सा करें
अपने पिता का नाम रोशन करें
वह फिर बेटी हो या बेटा
बेटी को भी वह पढाता - दिखाता है
वह उसे भी ऊंचाई पर देखना चाहता है
मन के किसी कोने में यह भी इच्छा होती है
इसको घर - वर अच्छा मिले
वह डरता है
उसके भविष्य को लेकर चिंतित होता है
उसे विश्वास नहीं रहता
वह उधेड़बुन में रहता है
बेटे के बारे में जिस स्वतंत्रता से सोच सकता है
वह बेटी के बारे में नहीं
बेटी के समय वह मजबूर हो जाता है
उसे बेटी को दूसरे के घर में भेजना होता है
कितना भी यतन कर लें
आखिर तो भाग्य ही होता है
वह विधाता नहीं है न
कोई बाप अपनी बेटी के ऑखों में ऑसू नहीं देखना चाहता
अपनी लाडली के लिए वह राजकुमार चाहता है
वह राजा भले न हो
बेटी उसके लिए किसी राजकुमारी से कम नहीं
रामायण युग में जनक मजबूर थे
आज इक्कीसवीं सदी में भी जनक मजबूर है
वह बेटी का पिता जो है
बहुत बडे - बडो को देखा है
जो बहुत मजबूत होते हैं
पर बेटी के कारण मजबूर हो जाते हैं
बेटी दे भगवान
तब भाग्य  भी दे
जोरदार नसीब भी दे

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