जिंदगी तू कहीं साक्षात मिल जातो
तब तुझसे मैं पूछती
सवाल - जवाब करती
तू मेरे साथ ही इतना पक्षपात क्यों करती है
कभी खुल कर कुछ नहीं देती
अपने हाथ बांध कर रखती है
जब देखती हूँ दूसरों को
तब कुछ ईष्या सी होती है
तू मुझ पर इतनी मेहरबान क्यों नहीं हुई
बहुत सताया बहुत रूलाया
आमने-सामने आ जा
तब तो हिसाब मांगू
पर तू कहाँ आने वाली
ऑख मिचौली खेलती रहती है
पल में बदल जाती है
हम अवाक रह जाते हैं
संभलना तो दूर
सोच भी नहीं पाते
यह क्या हुआ
क्यों हुआ
कैसे हुआ
सवाल का जवाब तो फिर भी नहीं मिलता
तू है बडी चालाक
स्वयं को दोष कभी नहीं देती
बस भाग्य का भरोसे छोड़ देती है
कभी तो सामने आ
जरा ऑख मिला
पूछे तो सही
क्या खता हमसे हुई
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Thursday, 4 March 2021
क्या खता हमसे हुई
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