वह रोयी होंगी
सिसकी होंगी
तकिये में सर छिपाए ऑसू पोंछे होंगे
माॅ - बाप से अपना दुख छिपाया होगा
हर वेदना सही होगी
हर पीडा का अनुभव किया होगा
बहुत गम सहा होगा
बहुत बर्दाश्त किया होगा
न जाने कितनी बार दिल टूटा होगा
बार - बार सहेजा होगा
सहेजते - सहेजते
सिसकते - सिसकते सब्र का बांध टूट गया होगा
कुछ और न रास्ता दिखा होगा
इन सबसे छुटकारा पाने का
तब एक ही रास्ता दिखा
वह था साबरमती का
माॅ है नदी
बेटी को अपना लिया
उस समय सिसकी तो वह भी होगी
उसका बस चलता तो बाहर कर देती
वह तो जीवनदायिनी है
आज मृत्युदायिनी बन गयी
रो तो वह भी रही होंगी
यह नहीं सोचा होगा
मृत्यु का माध्यम मैं बनूँगी
और कुछ नहीं दिखा तब
मेरी गोद दिखी
मुझे प्यारी नदी कहा समाने से पहले
मैं तो ऐसी प्यारी बेटी को अपने में ले लिया
उसका अफसोस तो मुझे ताउम्र रहेंगा
ऐसी न जाने कितनी आएशा होंगी
पर यहीं कहना चाहूंगी
जीवन मत दो
मुझे देखो
बाढ आती है
अकाल पडता है
कूडा - कचरा डाला जाता है
गंदगी फैलाई जाती है
मरे हुए पशुओं को डाला जाता है
मैला ढोया जाता है
तब भी सब्र करती हूँ
बरखा होने पर फिर लहराती हूँ
सबके काम आती हूँ
जान देने से पहले मुझे जी भर देखा होता
कुछ सोचा होता
अपने प्रियजनों के बारे में
तब शायद यह नहीं होता
तुम कूद रही थी
मैं मजबूर बह रही थी
माता की गोद मृत्यु की गोद बन गई
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Sunday, 7 March 2021
साबरमती भी रोयी होंगी
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