फिर लौट चलें
जहाँ से चले थे
वह गांव था हमारा
शहर की चकाचौंध में कहीं भूल गया था
विपदा पडी तो वह याद आया
महामारी ने सच से रूबरू कराया
शहर में तो पैसे होने पर भी आप मजबूर
लाकडाऊन के कारण
खाने - पीने की भी किल्लत
गाॅव आबाद रहें
सब्जी शहर न जा पाई
औने पौने में मिली
पडोसी से तो मुफ्त में मिलीं
खाना - पीना सब सुरलित
घर का अनाज
कहीं कोई कमी नहीं
हवा भी ताजा तरीन
न प्रदूषण न धुआं
न मास्क न सेनिटाइजर
इतना बडा घर
इतना बडा अहाता
इतना बडा खेत - खलिहान
इतना बडा बाग - बगीचा
कहीं भी ठौर ले लो
एक - दो गज की दूरी की बात ही नहीं
कितने भी दूर बैठो
तब लगा
अरे यार
बहुत कुछ छूटा
जीवन तो यहाँ भी है
शहर में ही नहीं
गाँव में भी लोग रहते हैं
वह भी सुकून से
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Wednesday, 3 March 2021
फिर लौट चलें
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