सहने को तो सब सह लेते हैं
सब्र भी कर लेते हैं
इंतजार भी कर लेते हैं
फिर भी वक्त नहीं बदलता
तब तो धीरज टूट जाता है
मिट्टी की मूर्ति नहीं
भावनाओं में रहता इंसान है
जब वह टूटता है
तब जुड़ना बहुत कठिन
जब तक सहता है
तब तक सहता है
जब सीमा खत्म हो जाती है
तब सारे बंधन खत्म कर देता है
उसे फिर वही रूप में पाना
वह शायद होता नहीं
परीक्षा तो परीक्षा की तरह हो
जीवनपर्यन्त परीक्षा
तब तो वह सच में परेशान
जोड़ते - जोड़ते हैरान
जिंदगी के खेल से परेशान
हर बार हार
नहीं उसे स्वीकार
Hindi Kavita, Kavita, Poem, Poems in Hindi, Hindi Articles, Latest News, News Articles in Hindi, poems,hindi poems,hindi likhavat,hindi kavita,hindi hasya kavita,hindi sher,chunav,politics,political vyangya,hindi blogs,hindi kavita blog
Monday, 1 March 2021
सहना कितना
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment