Monday, 1 March 2021

सहना कितना

सहने को तो सब सह लेते हैं
सब्र भी कर लेते हैं
इंतजार भी कर लेते हैं
फिर भी वक्त नहीं बदलता
तब तो धीरज टूट जाता है
मिट्टी की मूर्ति नहीं
भावनाओं में रहता इंसान है
जब वह टूटता है
तब जुड़ना बहुत कठिन
जब तक सहता है
तब तक सहता है
जब सीमा खत्म हो जाती है
तब सारे बंधन खत्म कर देता है
उसे फिर वही रूप में पाना
वह शायद होता नहीं
परीक्षा तो परीक्षा की तरह हो
जीवनपर्यन्त परीक्षा
तब तो वह सच में परेशान
जोड़ते - जोड़ते हैरान
जिंदगी के खेल से परेशान
हर बार हार
नहीं उसे स्वीकार

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