Monday, 1 March 2021

यह तो उसकी समझ का फेर है

जब वह ठान लेती है
तब वह यमराज से लड जाती है
सावित्री बन पति को मांग लाती है
वह जब ठान लेती है
तब रातोरात तख्तोताज उलट देती है
कैकयी बन राजा दशरथ से अयोध्या का राज मांग लेती है
जब वह ठान लेती है
तब तो महाभारत का युद्ध निश्चित है
अपने सखा कृष्ण से वह प्रतिशोध ही मांग लेती है
जब वह ठान लेती है
तब लक्ष्मीबाई बन पीठ पर बेटे को बांध अंग्रेजों से लोहा ले लेती है
जब वह ठान लेती है तब इंदिरा बन विश्व के नक्शे को बदल डालती है
एक नए बांगलादेश का निर्माण कर डालती है
वह मीरा बन कर सिंहासन को धता बता देती है
शबरी बन राम को अपनी कुटिया में बुला लेती है
सुलोचना बन मेघनाथ की कटी भुजा से लिखवा लेती है
सीता बन रावण की लंका के विनाश का कारण बन सकती है
उसको कम आंकना बहुत बडी भूल
वह अपने लिए नहीं अपनों के लिए न जाने क्या - क्या कर जाती है
शक्तिस्वरूपा बन जाती है
तब भी दिखाती है
वह कुछ भी नहीं है
जो इस भ्रम में रहता है
नारी को कमजोर समझता है
यह तो उसकी समझ का फेर है

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