मैं गिरता रहा
उठता रहा
गिरता रहा
लडखडाता रहा
संभलता रहा
उठने की कोशिश करता रहा
बैठा नहीं न बैठने की कोशिश की
पहुंचना था कहीं ऊंचाई पर
हार कैसे मानता
आखिर पहुँच ही गया
मंजिल मिल ही गई
ऊंचाई से जब नीचे की ओर देखता हूँ
तब देखता ही रह जाता हूँ
अपने पर ही मंत्र मुग्ध
यकीन नहीं होता
यह मैं ही हूँ
सब पिछले दृश्य मानस पटल पर
एक - एक घटनाएं जेहन में
फिल्म की पूरी रील सी घूमती हैं
सारे संघर्ष
सारी जद्दोजहद
सारी परेशानी
सारी उपेक्षा
सब कुछ ऑखों के सामने
विचलित हो जाता है मन कुछ क्षण भर
पर दूसरे ही क्षण छू मंतर
गिरता नहीं तो उठता कैसे
लडखडाता नहीं तो संभलता कैसे
सपने नहीं देखता तो साकार करता कैसे
उपेक्षित नहीं होता तो कामयाब कैसे
आज उन सबका शुक्रिया
जिन्होने मुझे गिराया
मेरी उपेक्षा की
मुझे कमतर समझा
मेरे पग पग पर रोडे अटकाए
अगर ये लोग नहीं होते
तब मैं भी शायद वह नहीं होता जो आज हूँ ।
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Tuesday, 27 April 2021
मेरा आज मेरा कल
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