बचपन था तब सोचते थे
बडे हो जाएं
अपनी मर्जी से जीएगे
हर बंदिशो को तोड़ेगे
मन मर्जी करेंगे
किसी का हुक्म नहीं मानेगे
ऐश - आराम करेंगे
घूमेंगे , खाएंगे - पीएगे
अपने मन का करेंगे
गया बचपन आई जवानी
अब आटे - दाल का भाव समझ में आया
जितना सोचें ऐसा जीवन आसान नहीं है
पग - पग पर मुसीबतों का रेला
जीवन जीने की जद्दोजहद
बिना काम किए यहाँ नहीं होता गुजारा
बैठे नहीं काम होनेवाला यहाँ
बचपन तो बचपना था
बिना चिंता- तनाव के रहना था
जवानी की बात ही अलग है
वह भोलापन गया
अब कर्मठ होने की बारी है
अब नहीं तो फिर कब ??
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