Wednesday, 11 August 2021

वह बस अच्छी लगती है

वह चलती है
वह बोलती है
वह मुस्कराती है
मैं  देखता रहता हूँ
स्तब्ध हो जाता हूँ
बोलना चाहता हूँ
कुछ बोल नहीं पाता
मुस्कान भी गायब
शब्द हीन हो जाता हूँ
मन में  भाव भरे
पर भावों का इजहार नहीं कर पाता
बस ऑखों- ऑखों में  बात हो जाती है
वह समझती है या नहीं
यह भी नहीं जानता
वह बस अच्छी लगती है
मन करता है
पास बैठे रहूँ
निहारता रहूँ
जागते - सोते बस उसका ख्याल
सपने में भी वही
मदहोशी छा जाती जब याद उसकी आती है
सामने रहूं तो होश ही खो देता हूँ
दिल के हाथों मजबूर हूँ ।

No comments:

Post a Comment