Wednesday, 25 August 2021

दर - दर भटकने वाला भिखारी

तुम छोड़ गए थे
मेरा संसार  उद्धवस्त कर गए थे
तीन बच्चों की माँ  तो बना दिया था
पर न पति बन पाए न पिता
मन तुम्हारा विरक्त हो चुका था
सांसारिक मोह माया से मुक्त  होना चाहते थे
इसलिए योगी बन गए
संन्यासी बन गए
मुझ पर तोहमत लगा
मैं तुम्हें संभाल न पाई
अपने मोहपाश में बांध न पाई
तुम्हारा परिवार हिकारत की नजरों से देखता था
परिवार क्या समाज भी

मैंने भी हार नहीं मानी
कमर कस कर तैयार हो गई
अपने दम पर बच्चों का पालन-पोषण किया
दिन रात मेहनत की
आज अपने पर गर्व होता है
मैं  तुम जैसी भगोडा  नहीं
कर्म छोड़ जोगिया भेष धारण कर लेना
यहाँ वहाँ भीख मांग कर गुजारा करना
इससे ज्यादा कायरपन क्या होगा
नपुंसक थे तुम
अपनी जिम्मेदारी उठाने के काबिल नहीं थे

आज मैं जहाँ खडी हूँ
उस स्थान पर तुम पहुँच ही नहीं सकते
तुम तो भिखारी ही रह गए
कटोरा ले इस घर से उस घर
घर बनाना तुम क्या जानो
बडी तपस्या और त्याग करना पडता है
गृहस्थी की गाड़ी चलाना इतना आसान नहीं

तुम क्या अपने को भगवान बुद्ध समझ बैठे थे
या फिर बाबा तुलसीदास
मैं न यशोधरा थी न रत्नावली
ऑसू बहाना नहीं  था
कर्म से भाग्य बदलना था
मैं तो आज बहुत कुछ हूँ
न तुम भोगी ही बने न योगी ही
दर - दर भटकने वाला भिखारी बन कर रह गए।

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