Thursday, 23 September 2021

कृपा तो बरसती रहेंगी

आज खीर - पूरी बनी है
साथ में गरमा गरम पकौडे भी
माँ को बहुत पसंद थे न
पर वह कभी खुद चैन से न खा पाई
दूसरों को खिलाने के चक्कर में
अब वह रही नहीं
दूसरे लोक की वासी हो गई है
उसकी याद आ गई
श्राद्ध जो शुरू हुआ है
तुम्हारी मनपसंद भोजन बनाना है
कौए को खिलाना है
जीते जी तो नहीं खिला सके
तुम्हारे जाने के बाद न किसी ने उतने प्रेम से खिलाया ही
साल में एक बार तुम यादों के साथ आगमन करती हो
तुम्हारे बहाने ही सही
घर में पकवान तो बनते हैं
पहले तुम्हारे हाथ का बना खाता था
अब तुम्हारे बहाने खाता हूँ
माँ- बाप तो माँ- बाप ही होते हैं
उनकी जगह कोई ले ही नहीं सकता
उनका ऋण कोई उतार ही नहीं सकता
धरती पर रहे चाहे आसमान पर
कृपा तो बरसती ही रहेंगी ।

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