Thursday, 23 September 2021

जय किसान जय अन्नदाता

यह हरी - भरी हरियाली हमसे हैं
यह गेहूं- मटर की फसले हमसे हैं
हम पैसा नहीं उगाते अन्न उगाते हैं
लोगों का पेट भरते हैं
धरती को सींच - सींच उपजाऊ बनाते हैं
मिट्टी का सोना करते हैं
भाई हम नौकरी - व्यापार नहीं
खेती - किसानी करते हैं
पहचान  हमारी किसी से छुपी नहीं
मैं किसान हूँ
इस बात का गर्व है मुझे
ईश्वर नहीं है हम
पर हम न होते तो इस जहां में  कोई नहीं होता
जीने का सहारा नहीं होता
भोजन बिना तो भगवान का भजन भी नहीं भाता
   भूखे पेट भजन न होय गोपाला
            जय किसान जय अन्नदाता

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