एक साहुकार थे बडे रोबीले और अनुशासित। एक बार शाम को कुछ बच्चे चंदा इकठ्ठा करने के लिए निकले नेत्रहीनों की संस्था के लिए। साहुकार के दुकान पर पहुंचे ही थे तो कदम कुछ दूरी पर रूक गए। साहुकार नौकर को चिल्ला रहे थे क्योंकि उसने दीया जलाने के लिए दो - तीन माचिस की तीली का उपयोग कर लिया था ।
बच्चों ने सोचा यह इतना कंजूस सेठ । यह क्या देगा । वे वापस मुडे कि सेठ जी ने देख लिया और उनको बुलाया ।बताने पर उनको एक अच्छी- खासी रकम भी दी चंदे के स्वरूप में । बच्चों को आश्चर्य हुआ कि अभी तो दो तीली के लिए गुस्सा कर रहे थे अब चंदा भी दिल खोलकर दे रहे हैं। एक बच्चे ने पूछ ही लिया तब उन्होंने उत्तर दिया कि बिना कारण खर्च करना यह मुझे पसंद नहीं है इसका मतलब यह नहीं कि व्यक्ति कंजूस है , उसे मितव्ययी कहते हैं। बूंद बूंद से घट भरता है ।
यह कहानी बचपन में पढी थी तब आज भी लगता है कि कितनी सही है । आज भी जब हम ट्रेन या बस से जाते हैं तब बच्चे गुस्सा करते हैं कहते हैं टैक्सी- कैब से जाओ पर उन्हें एहसास नहीं है कि हमने ऐसा किया है तब वे आज गाडी- मोटर से चल रहे हैं। अगर एक बल्ब भी फिजूल जल रहा है तब वह भी गलत है ।आज हमारे पास है कल शायद मयस्सर न हो ।
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Tuesday, 14 December 2021
बूंद बूंद से घट भरता है
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