आजकल एक बात बहुत काॅमन हो गई है
हर घर से यह आवाज आती है
वह छोटा हो बडा हो या मध्यवर्गीय हो
तुमने हमारे लिए किया ही क्या है
उसके मम्मी पापा को देखों
कितना करते हैं
होटल में लेकर जाते हैं
घुमाने- फिराने
महंगे ट्यूशन
मंहगा मोबाइल
यह सब सुन लेते है पैरेन्टस
जब तक बच्चा नाबालिग रहता है
नागवार नहीं गुजरता
हंस कर टाल देते हैं
नादानी समझ कर माफ कर देते हैं
चुभता तब है
जब यहीं बच्चे बडे हो जाते हैं
कहने को समझदार हो जाते हैं
अपने पैरों पर खडे हो जाते हैं
कमाते हैं गृहस्थी बसाते हैं
तब यह खलता है
हर वक्त माँ- बाप को दोष देना
यानि हर वक्त उनको कमी का एहसास दिलाना
नीचा दिखाना
उनको नाकारा सिद्ध करना
हम भी थे
जितना था उसमें खुश थे
माँ- बाप की मजबूरियों को समझते थे
फालतू का जिद और नाज - नखरा नहीं करते थे
जो मिला खा लिया
जो मिला पहन लिया
किसी से तुलना नहीं करते थे
अनुशासन को बंधन और रूकावट नहीं समझते थे
हर बार कोसना
अरे कब तक
तब तो वैसा भाग्य लेकर आना चाहिए था
अंबानी और टाटा के घर जन्म लेना था
हर माँ बाप अपना बेहतर देने की कोशिश करते ही है
कमी निकलोगे तो निकालते ही रह जाओगे
उन्होंने अपनी इच्छाओं का गला घोटा होंगा
सपने और मन मारे होंगे
तब इस मुकाम पर पहुंचाया है
रास्ते पर फेंका नहीं
जीवन का रास्ता दिखाया है
अब वह तुम्हारी मर्जी
चुनाव तुम्हारे हाथ में हैं
माता- पिता अमर होकर नहीं आए हैं
अब तुमको जो खाना हो खाओ
जो पहनना हो पहनो
जहाँ घुमना हो घूमो
जो निर्णय लेना हो लो
स्वतंत्र हो
माता-पिता की जिम्मेदारी पूरी हो गई है
अब तुम्हारी बारी है
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