ऑखों में ऑसू भर आए
उनकी याद में जो चले गए
कभी ऊंगली पकड़ चलना सिखाया था
कभी झूले पर बैठा झूला झुलाया था
कभी बस्ता टांग पाठशाला पहुंचाया था
कभी होटल में बडा पाव और मिसल पाव खिलाया था
कभी थियेटर में सिनेमा दिखाया था
कभी नाराज और गुस्सा भी हुए थे
कभी हंसकर बातों को टाल दिया
कभी दिल पर लेकर बैठ गए
रूठने- मनाने का सिलसिला तब तक चला
तब तक तुम थे
आकाश से मुझे मतलब नहीं था
एक बडे से आकाश की छत्रछाया थी
जो बादल घिरने ही नहीं देता था
बिजली कडक कर ढाए
उससे पहले ही संभाल लेता था
बहुतों को खोया
कुछ अपने कहे जाने वाले कुछ पराए
कुछ बेहद अजीज
यह ऑख जल्दी भरती नहीं
बहुत कठोर है दिल
लेकिन जहाँ आपकी बात आती है
पानी ही पानी भर आता है
जैसे समुंदर समाया है
रोकने की कोशिश करों
तब भी बह ही जाते हैं
समझ गए न
मैं किसकी बात कर रही हूँ
आपकी बाबूजी
जिनको संक्षेप में बावजी- बाजी कहती थी
अब छुपके से ऑखों के ऑसू पहचानने वाले
तुम तो रहे नहीं
ऑसूओं के पीछे की व्यथा बाप ही जान सकता है
बाप हैं तो जहान है ।
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