अपने दिवंगत पुत्र अभिमन्यु के बारे में
कहीं न कहीं दोषी स्वयं को मान रही
गर्भ में आया बेटा
प्रसन्नता हुई
माता बनने का सौभाग्य
भ्राता कृष्ण का भांजा
सुदर्शन चक्रधारी का शिष्य
गांडीव धारी अर्जुन का बेटा
आज काल ने ग्रस लिया
कोस रही उस दिन को
जब सुन रही थी चक्रव्यूह भेदन
अचानक निद्रा ने घेर लिया
अंदर जाना तो सुन लिया
बाहर आना वह सुन न सकी
न सोई होती उस दिन
आज काल का ग्रास न बना होता पुत्र
वीर पुत्र की माता
सदियों याद रखेंगा जग
अभिमन्यु की वीरता को
किस तरह महारथियों से वह अकेला लडा
एक ही भारी सब पर पडा
साथ ही जन्म कथा भी आएंगी
चक्रव्यूह भेदन तो जानता था
निकलना सुन नहीं पाया
वही आज मृत्यु का कारण
कहीं मैं ही तो नहीं
उस दिन अगर न सोई होती
तब तो पूरा सुनती
और लाल मेरा
चक्रव्यूह भेदन कर बाहर आता
विधि का विधान न जान पाई
नहीं तो निद्रा को न आने देती
अपने ही पुत्र के मौत का दोषी स्वयं को न मानती
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