Wednesday, 19 January 2022

वैधव्य

शरीर नारी का 
हल्दी लगी पुरूष की
हाथ नारी का
मेहंदी लगी पुरूष के नाम की
मांग नारी की
सिंदूर भरा पुरूष के नाम का
माथा उसका
बिंदी सुशोभित पुरूष से
गला उसका 
मंगल सूत्र पति चा
ऐसे ही चूडियां 
बिछिया
पायलिया 
सजती है
खनखनाती है
बजती हैं 
उसी के नाम से
अगर वह न हो तब
इनको सूना रहना है
सजना - संवरना नहीं 
समाज क्या कहेगा 
विधवा है फिर भी
नखरे तो देखो
जरा भी दुख नहीं 
समय बदला है
पर इतना भी नहीं 
मानसिकता तो वैसी ही है
पुरूष के बिना नारी का असतित्व 
यह कुछ की समझ से परे हैं 

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