30 जनवरी 1948, शुक्रवार की शाम 5:17 का समय ,तीन गोलियों की आवाज और उसके बाद पसरे सन्नाटे को देश को संबोधित करती पंडित नेहरू की आकाशवाणी से शोक से सनी आवाज साथियों, "हमारे जिंदगी से रोशनी चली गयी,हर जगह अंधेरा है और मैं इस समय बिल्कुल नहीं जानता कि क्या कहना है और कैसे कहना है ,हमारे प्यारे बापू राष्टपिता अब हमारे बीच नहीं रहे।हमारे ही एक भाई ने बापू की हत्या कर दी है ।..."
इस सूचना के बाद पूरा देश या यूं कहें कि पूरा विश्व थम सा गया।जवाहर लाल नेहरू ने अपने संदेश में यह कहना कि "हमारे ही एक भाई" बहुत ही सोच समझ के बोला गया शब्द था ।आज चौहत्तर वर्ष बाद हम उस विभीषिका की कल्पना नहीं कर सकते हैं जो उस समय उत्पन्न हुईं थीं।अगर नेहरू उस शब्द का प्रयोग नहीं करते तो पूरा राष्ट्र हिन्दू मुस्लिम दंगों के ज्वार में डूब जाता।
गांधी उस समय के विश्व के सबसे लोकप्रिय नाम थे और भारत की आम जनता तो उनको भगवान का दर्जा दे चुकी थी । गांधी आम लोगोंके बीच कितने मक़बूल और मशहूर थे इसका प्रमाण मणि भवन, मुम्बई में रखा वो पोस्ट कार्ड है जो दुनिया के किसी कोने से आता है उस पर पता लिखा है,GANDHI,INDIA और यह पोस्टकार्ड गांधी जी को मिलता भी है।ऐसी मक़बूलियत से किसको रश्क नहीं होगा।30 जनवरी के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपना झंड़ा झुका दिया था।पूरे विश्व से 3441 शोक संदेश आये थे जिसमें से कुछ हैं-(1)Gandhi ji was saint-George Orwell.(2)The people will not believe that a man built from blood & toil were roaming on this earth.-Elbert Einstein (3)It shows you how dangerous it is to be too good.-George Bernard Shaw (4) The death of my old rival was a loss of not only to Hindu community but a loss of humanity-MAJinnah(5) It is not the time to speak as it is occasion of mourning.Let us weep.let the nation weep and wipe off from its soul the stain of the innocent blood of the greatest man the world has ever produced.-Jai Prakash Narayan.
महात्मा की हत्या से पूरा विश्व स्तब्ध था।गांधी बाबा उस समय शांति के देवदूत,अहिंसा के पुजारी और त्याग की मूर्ति बन चुके थे।लार्ड माउन्टबेटन ने उन्हें प्यार,सत्य व सहिष्णुता की वो मशाल बताया जिससे पूरा विश्व रोशनी पा रहा था। चर्चिल का वह अधनंगा फकीर 78 वर्ष की आयु में एक
किबदंती बन चुका था।हिन्दू और मुसलमान कौम उनकी दो आंखे थी,दोनों उनको बहुत शिद्दत से चाहते थे।हिदुओं के लिए वो परिवार के बाबा सदृश थे तो मुसलमान के घर के बुजुर्ग,ये गाँधी जी का ही करिश्मा था कि नोआखली के दंगे में अकेले जाकर दंगाइयों
को शांत कराया।गाँधी जी के अंत समय मे उनके होंठ पर" हे राम" था जो कि हर हिन्दू की दिली इच्छा होती है और विडम्बना तो ये थी कि उनके हत्यारे का तर्क था कि वो हिन्दू हितों की उपेक्षा कर रहे थे।ये ठीक ऐसे ही था जैसे एक बाप की दो संतानों में से एक पागल लड़का अपने पिता की हत्या कर देवें और ये कहे कि पिता उसके भाई को ज्यादा प्यार करता है। इसमें रंचमात्र भी संदेह नहीं है कि
गांधी जी की शहादत ने उन्हें सुकरात और ईशा मसीह की सफ़ में खड़ा कर दिया था।
गांधी की हत्या के बाद गांधी का भौतिक स्वरूप समाप्त हुआ पर उनके विचार व सिद्धान्त और ज्यादा मजबूत व सर्वग्राह बने ।
गांधी जी अपने जीवन काल मे ही हिंदुस्तान का पर्याय बन चुके थे।स्वाधीनताआंदोलन काल में अपने अफ्रीका से वापसी के पश्चात गांधी जी ने जनता को कॉंग्रेस पार्टी से जोड़ा इसके पूर्व कॉंग्रेस अभिजात्य वर्ग व वकीलों की पार्टी थी।गांधी जी ने इसकी शुरुआत चंपारण आन्दोलन से की,चंपारण के किसान राज कुमार शुक्ल के आमंत्रण पर गांधी जी चंपारण गए और नील की खेती करने वाले किसानों को निलहे साहबों शोषण से मुक्ति दिलाई।उसके बाद बारदोली आंदोलन,सूरत मिल सत्याग्रह,असहयोगआंदोलन,दांडी मार्च आदि आंदोलनों में गांधी जी के नेतृत्व को और तराशा।गांधीजी 1924 में कॉंग्रेस पार्टीके सभापति बने।1930 में टाइम्स पत्रिका ने उन्हें पर्सनऑफ द ईयर के खिताब से नवाजा।1934 में महात्मा ने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया पर वह कॉंग्रेस के अविभाज्यअंग बने रहे।महात्मा का सम्बोधन गांधी जी को गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर ने दिया था।उसके बाद 1942 में गांधी जी के नेतृत्व क्षमता का चर्मोत्कर्ष देश ने देखा 8 अगस्त की सुबह गाँधीजी के भारत छोड़ो के आह्वान के साथ पूरा देश रुक सा गया।भारत के कोने कोने में लोगों ने अपने गान्ही महातमा की इस अपील पर तार काट डाले,रेलसेवा भंग कर दी ।पहली बार अंग्रेजों को यह ।महसूस हुआ कि अब भारत को गुलाम रखना नामुमकीन है।द्वितीय विश्वयुद्ध और नौसैनिक विद्रोह ने इसमें उत्प्रेरक का कार्य किया। उसके बाद ब्रिटिश शासन ने कैबीनेट मिशन भेजा जिसने सत्ता हस्तांतरण की कार्यप्रणाली की रूपरेखा बनायी। इस स्वाधीनताआंदोलन के साथ साथ भारत विभाजन के लिए एक वर्ग प्रयास कर रहा था और उनका नेतृत्व कर रहे थे मुस्लिमलीग के नायक मोहम्मद अली जिन्नाह।अंततोगत्वा भारत के विभाजन के बाद ही हम आजाद हुए।पाकिस्तान के रूप में एक नया राष्ट्र वजूद में आ चुका था और इस प्रसव पीड़ा को सबसे अधिक जिसने सहन किया वो था साबरमती का सन्त जिसके हिस्से में अब कोई कमाल न था वो 15 अगस्त 1947को नोआखली की गलियों में बिना अपने जान की परवाह किये दंगों को शांत कर रहा था।विभाजन का दंश सबसे अधिक उस 78 वर्ष के बूढ़े नायक ने महसूस किया था जिसके एक पग चलने पर कोटि पग उसी ओर चल पड़तेथे।जिसके एक बार देखने पर करोड़ों आँखे उसी ओर देखने लगती थी। जिसने ये दावा किया था कि देश का विभाजन उसके शव पर होगा। वो गांधी तो उसी दिन मर गया था जब उनकी आँखों ने अपने लाखों बच्चों को बेहाल,घायल ,मजबूर,
पस्त हिम्मत, विक्षिप्त अवस्था मे इधर से उधर पलायन करते देखा था।
वास्तव में गाँधी जी स्वाधीनता के बाद एकदम एकाकी जीवन जीने लगे थे।उनका जीवन बस विभाजन जन्य विकृतियों को ठीक ठाक करने में ही बीत रहा था।भारत पाकिस्तान की आपसी झड़प,शरणार्थियों की समस्याओं ,नेहरू गांधी का आपसी द्वंद आदि ने गांधीजी को बुरी तरह तोड़ दिया था।20 जनवरी 1948 को गांधीजी पर बम फेंका गया,इस घटना के बाद भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री और गृहमंत्री नेहरू और पटेल उनको देखने गए और बापू की सुरक्षा के लिए गार्ड नियुक्त करने के लिए कहा तो बापू ने कहा कि यदि मैं अपने भाइयों से असुरक्षित हूँ तो मैं जीकर क्या करूँगा।अगर तुम लोग ज्यादा जिद करोगे तो मैं दिल्ली छोड़ के चला जाऊँगा।28 जनवरी को मेहरौली में बख्तियार काकी की दरगाह पर पाकिस्तान से आने वाले शरणार्थियों के कैम्प के कुछ लोगों ने तोड़ फोड़ करके दरगाह को नुकसान पहुंचाया।गांधीजी उसी दिन दरगाह पर गए और उन्होंने नेहरू जी को दरगाह की मरम्मत के लिए सरकारी कोष से 50000 देने को कहा। नेहरू और सरदार पटेल में मतभेद बहुत बढ चुका था,दोनों इसके हल के लिए गांधी जी के पास गए, गांधीजी का उत्तर था मि भारत की बेहतरी के लिये नेहरू और पटेल को साथ साथ काम करना चाहिए।30 जनवरी को सरदार पटेल पुनः गांधी जी से मिलने 4बजे शाम को बिड़लाभवन गए थे ,गांधीजी से उनकी मुलाकात 5 बजे तक चली । रोज 5बजे सायंकाल गांधी जी प्रार्थना सभा को संबोधित करते थे,उसदिन उन्हे विलंब हो रहा था,गांधीजी मनु और आभा का सहारा लिए सभा स्थल की ओर चले,उसी समय नाथूराम गोडसे जो पूना का चितपावन ब्राह्मण और हिन्दूमहासभा का सदस्य भी था ,गांधीजी को गोली मार दिया दिया। उसी सभा मे एक अमेरिकन डिप्लोमेट वीमर भी था जिसने गोडसे को पकड़ लिया।गांधी जी की हत्या के बाद सरदार पटेल को यह अपराधबोध हो गया कि वह गांधीजी को नहीं बचा सके और सरदार इसके लिए अपने आपको दोषी मानने लगे थे।गांधी जी की मृत्यु के बाद लालकिले में ट्रायल शुरू हुआ व अंततोगत्वा गोडसे और विनायक आप्टे को अम्बाला जेल में 15 नवम्बर1950 को फांसी दी गई एवम बाकी 5 अभियुक्तों को आजीवन कारावास का दंड दिया गया। गांधी अब एक विचारधारा बन चुके हैं।आज के दौर में गांधीजी की नीतियों पर खूब बहस और विमर्श हो रहें हैं। कुछ राजनीतिक दल गांधी का ककहरा पढ़ के जिंदा हैं तो कुछ नेताओं को प्रसिद्धि ही गांधी के आलोचना से मिली है। यहाँ पर शेक्सपियर की वह उक्ति याद आती है जिसमे ये कहा गया है कि तुम मुझे प्यार कर सकते हो या घृणा कर सकते हो पर मेरी उपेक्षा नहीं कर सकते हो। आज भी गांधी वादी समाजवाद,गांधीवादी आर्थिक नीति, कतार के आखिरीआदमी के रूप में गांधी राजनीतिक माला के सुमेरु बने हुए हैं।क्या विश्व के किसी राष्ट्राध्यक्ष में इतना साहस है कि वह भारत आये और राजघाट न जाये।हमारे 15 अगस्त की शुरूआत ही राजघाट से होती है ,यही है बापू की सार्थकता।नमन महात्मा!💐
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