Monday, 31 January 2022

मेरी मुठ्ठी में जो समाएं

आसमान तो बहुत बडा है
इतना बडा लेकर क्या करूगा 
मेरी मुठ्ठी में समाएं 
उतना ही आसमान चाहिए 
वह आसमान जो खुले में दिखता है
वह तो मेरे बस का नहीं 
मेरी खिड़की से जो दिखता है
वही काफी है
खिडकी से दिखता रहें 
यह झरोखा कभी बंद न हो
ज्यादा मिल जाएंगा 
तब मैं न उसमें समा पाएगा
न वह मुझमें 
बस मुझे अपने हिस्से का चाहिए 
जिसके छत्रछाया में मैं मजबूती से खडा रहता सकूं  ।

No comments:

Post a Comment