इतना बडा लेकर क्या करूगा
मेरी मुठ्ठी में समाएं
उतना ही आसमान चाहिए
वह आसमान जो खुले में दिखता है
वह तो मेरे बस का नहीं
मेरी खिड़की से जो दिखता है
वही काफी है
खिडकी से दिखता रहें
यह झरोखा कभी बंद न हो
ज्यादा मिल जाएंगा
तब मैं न उसमें समा पाएगा
न वह मुझमें
बस मुझे अपने हिस्से का चाहिए
जिसके छत्रछाया में मैं मजबूती से खडा रहता सकूं ।
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