Thursday, 10 February 2022

एक थी लता

कितनी ही आंधी आई
कितने ही तूफान आए
यह लता कभी न डिगी
बस मंजिल की ओर बढती गई 
गिरती - पडती 
फिर उठ कर खडी होती रही
उस मुकाम पर पहुंच गई 
जहाँ पहुँचना नामुमकिन 
इतनी ऊंचाई 
देश - दुनिया में नाम 
हर कोई स्तब्ध
जैसे कोई ईश्वर का चमत्कार हो
स्वर की जादूगरनी 
हर कोई का शीश जिसकी कला के आगे झुक जाता हो
यह सब ऐसे ही हासिल नहीं 
तपस्या है जीवन की 
हाॅ मृत्यु ले गई अपने साथ
वह तो निर्मम ही होती है
फिर भी उसने उनको एक लंबा जीवन दिया
92 वसंत देखना जीवन के
हर किसी के नसीब नहीं 
इस लता ने देखा और जीया
लोग गीतों पर मंत्रमुग्ध होते रहे
एक - दो पीढी नहीं 
पांच पांच पीढियों के दिलों पर राज किया
इस स्वर सामाग्री ने
और आगे भी यह सिलसिला जारी ही रहेंगा 
इसमें कोई संदेह नहीं 
दीनानाथ मंगेशकर पर दीनो के नाथ ने कृपा की
जो उनके घर कन्या रूप में साक्षात सरस्वती को भेज दिया
यह लता वह अमर बेल हैं 
जो बिरले ही जन्म लेते हैं 
अलविदा दीदी
तुमने तो प्रस्थान किया इहलोक को
इस लोक के लोग तुम्हारी मधुर गीतों में हमेशा तुमको अपने साथ ही पाएंगे

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