आपको याद करना तो एक बहाना है
आपको भूलना हमको कहाँ गंवारा है
आपकी सबमें बसने वाली जान
वह कैसे दूर चले जाना है
पितृपक्ष क्या हर वक्त हमारे साथ रहना है
ईश्वर के साथ आपका आशीर्वाद
बस यही है हम सबकी दरकार
सारी दुनिया एक तरफ
आपका प्यार एक तरफ
वह तो सब पर भारी
आप गए ही कहाँ
सबमें तो थोड़ा थोड़ा समाए
आशा की सादगी और गुस्से में
अशोक की व्यवहारिकता और सहनशीलता में
संजय की ईमानदारी और अनुशासन में
अनुभा की कर्मठता और जुझारूपन में
ऋषभ की धीरता और शांत स्वभाव में
अलख के बुद्धिमानी और सीधापन में
वेदांत की च॔चलता और बेफिक्री में
आस्था का तर्क वितर्क और अपनापन में
मनु का ऑख बंद कर मुस्कराने के भोलेपन में
खाना खाते समय
सर छिलाया रूप
किसी की खिलखिलाती हंसी
नानवेज खाते
मन ही मन मुस्कराते
जमीन और चटाई पर लेटते
खाना खिलाते
हर क्षण में किसी न किसी रूप में समाए बाबूजी
ज्यादा न सही थोडा ही सही
कभी किसी रूप में कभी किसी रूप में समाए
किसी की ऑखों में
किसी की चंचलता में
किसी के माथे पर
किसी की हंसी में
किसी के थीरज में
किसी की मेहनत में
किसी की बातों में
किसी की हार न मानने वाले जीवटता में
किसी की नींद में
संसार जिसका अपने बच्चों के इर्द-गिर्द हो
बिना किसी की परवाह
अपने काम से काम
बच्चों में बसती हो जिसकी जान
उसका साथ छूटना तो मुमकिन नहीं
जिंदगी के साथ भी
जिंदगी के बाद भी
बाबूजी है हमेशा हमारे साथ
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