सबकी नजरों में अधर्मी हूँ
मुझे धर्म का ज्ञान नहीं
इसी काका विदुर के धर्म सिद्धांत ने
मेरे पिता से छीना था उनका राजमुकुट
पांडु बन गए महाराज
मेरे पिता का अधिकार छीन गया
अंधे होने के कारण
फिर छीना गया
जन्म हुआ भ्राता युधिष्ठिर का मुझसे पहले
इतिहास फिर दोहराया गया
मैं तो नेत्रहीन नहीं था न
कुछ विशेष प्यार बरसता था सबका
पांडु पुत्रों पर
पिता नहीं थे न
मेरे तो थे पर देख ही नहीं सकते थे
मामा शकुनि ने अपनी उंगली पकड़ाई
बहन का बदला लेने का जरिया मुझे बनाया
जी भर कर प्रेम बरसाया
अपने प्रिय भांजे पर
मैं बडा था
निन्यानबे भाईयों का आधार
मैं अपना अधिकार नहीं छोड़ सकता था
जुए का खेल रचा गया
पांसे मामा शकुनि के थे
खेलने बैठै थे धर्मराज
द्रौपदी को दांव लगाया
तब उनका धर्म कहाँ गया था
जुआ खेलना भी धर्म था क्या
मैं महान नहीं था
अंधे का पुत्र होने का ताना मारा था द्रोपदी ने
मैं वह भूला नहीं था
बदला लिया
अब देखें नेत्र वाले
गलत था
यह मैं भी जानता था
मेरे साथ तो अन्याय ही हुआ
हर पल हर जगह
लड रहे लोग मेरी तरफ से थे
मन से पांडवो के साथ
कोई अपनी मृत्यु का रहस्य बता रहा था
तो कोई बेटे की मृत्यु की खबर सुनकर मौत को गले लगा रहा था
मेरा अपना परम मित्र कर्ण
वह भी मेरा न रहा
माता को दिया हुआ वचन याद आ गया
अब तक का उपेक्षित राधेय
कौन्तेय बन चुका था
उस पर पांडवो के पथप्रदर्शक भगवान कृष्ण उनके साथ थे
मैं अंत तक हारा नहीं
योद्धा था
वहाँ भी छल हुआ
मेरी मृत्यु भी तो छल से हुई
मैं वीर गदाधारी था
बलराम का शिष्य था
अंत तक मैंने अपने क्षत्रिय धर्म का पालन किया
आधा क्या पांच गाँव भी दान में पांडवो को नहीं दिया
युद्ध करते हुए मरा
झुका नहीं
हर रणनीति और कूटनीति का उपयोग किया
एक कमी रह गई थी
मेरे पास कृष्ण नहीं थे
अगर कृष्ण न होते तब
परिणाम कुछ और होता
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