वह अमीर हो या गरीब
बहनें भी सबको प्यारी
वह अमीर हो या गरीब
कहने के लिए हैं
बेटी पराया है
यह तो गलत है
यह वह पराया धन है
जो बडी महफूजियत से संभाली जाती है
उसे अपने घर की इज्जत समझा जाता है
उसकी शादी के लिए पिता के पैर के जूते घिस जाते हैं
जवान भाई अपने शौक को दरकिनार रख काम करता है
ताकि दहेज जुटाता जा सके
जमीन जायदाद बेची जाती है
कभी-कभी अपना घर भी बेचा जाता है
ताकि बेटी सुखी रहें
गाहे - बगाहे उसके द्वार पर हाजिरी लगाते हैं
तीज - त्यौहार पर उपहार देते हैं
ताकि ससुराल में उनका मान - सम्मान बना रहें
दामाद को सर ऑखों पर बिठाते हैं
शादी के वक्त भी उसका पैर पूजते हैं
समानता का जमाना है ना
आज भी अगर बेटी घर में रहें
काम न करें तब कोई बात नहीं
वहीं बेटे को घर में बिठाया भारी
उस पर रोज तानो और उलाहनो की बरसात
देखा जाएं
तो बेटी सब पर भारी है
बडे से बडा भी अपनी बेटी के लिए किसी के आगे सर झुका लेता है
पहले लोग अपनी पगड़ी उतार कर रख देते थे
अब यह बात दिगर है
स्त्री और पुरुष में बेलेंस बनाये रखने के लिए कुछ नियम है
अगर अपवाद छोड़ दिया जाएँ
तो जितना सुनने को मिलता है
उतना भी उपेक्षित नहीं है
ये बेटियां।
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