युद्ध का परिणाम
यह कोई नहीं जानता
सैनिक मर रहे हैं
जान - मिल की हानि हो रही हैं
बर्बादी के सिवा कुछ नहीं
बाद में दोनों पक्ष के लोग मिलेंगे
समझौता करेंगे
यह तो बाद में होगा ही
तब तक बहुत कुछ नष्ट-भ्रष्ट
सारी दुनिया टकटकी लगाएं बैठी है
दो राष्ट्रध्यक्षो के ऊपर सारा दारोमदार
दोनों की अपनी अकड
अपना ईगो
जब तक हाथ मिलाएगे
तब तक क्या कुछ नहीं घट गया होगा
उसकी भरपाई कौन करेंगा
इसका प्रभाव न जाने कितनी पीढियाँ भुगतेगी
हिरोशिमा और नागासाकी का उदाहरण सामने हैं
और इसका परिणाम जो देश लड रहे हैं
वे ही नहीं
सारा संसार भुगतेंगे
सब एक दूसरे से किसी न किसी रूप में जुड़े हैं
पडोस में आग लगी हो
तो आंच उसके आस-पास को भी आएगी
युद्ध कितना भी शक्तिशाली हो
शांति की जगह नहीं ले सकता
वह विनाश कर सकता है विकास नहीं
ऐसे समय में गुप्त जी की पंक्तियाँ याद आ रही है
टुकड़े टुकड़े हो बिखर चुकी मर्यादा
उसको दोनों ही पक्षों ने तोड़ा है
पांडव ने कुछ कम
कौरव ने कुछ ज्यादा
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