Wednesday, 2 March 2022

झुकना भी एक कला है

जो झुका वही फैला
जो तन कर खडा रहा
वह अपने में सिमटा रहा
विस्तार और विकास 
तब होगा जब 
लीक से अलग कोई होगा
अपनी शोहरत को पाना है
तब विस्तार करना होगा
उसके लिए कभी झुकना कभी टूटना 
जब तक जीवन में झुके नहीं
तब तक कुछ मिले नहीं
अपने ही दायरे में सिमटा रहना
यह तो कोई बडप्पन की बात नहीं
सीधा तना खडा वह तूफान नहीं झेल सकता
जो लचीला झेल पाएंगा
थोड़ी देर के लिए इधर - उधर 
फिर अपनी जगह पर
जो लचीला रहा वह टिक गया
जो तना रहा वह ज्यादा नहीं टिका
समायोजन ही जिंदगी का दूसरा मकसद है
जो नहीं किया वह मिट गया

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