न बैट न बाॅल
न कोई मंहगा खेल
पत्थर और मिट्टी संग खेल रहे हैं
यह बाल गोपाल
ओठों पर है मुस्कान
मस्ती में भरपूर
यह है बच्चे शैतान
आ गया अपना भी बचपन याद
जब धागे में पत्थर बांध उछाला करते थे
पत्थर से गोटी गोटी खेलते थे
जिद आने पर जमीन पर लोट जाते थे
निश्छल बचपन भोला बचपन
अब समझदार हो गया
जिंदगी की आपाधापी में सब कुछ भूल गया
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