तब इसका जवाब होगा
बचपन में पाठशाला में
यह सही भी है
पर असली समझ और रूचि विकसित हुई
कक्षा पांच के बाद
तब चंदा मामा और चंपक जैसी बाल पत्रिका आती थी
अब तक कहानी पढ रही थी
चुटकुले और कार्टून से परिचय हो रहा था
थोड़ा बडा हुए
तब नवभारत टाइम्स पढना शुरू किया
वह भी केवल रोचक खबरें
नन्दकिशोर नौटियाल का ब्लिटज आता था हफ्ते में एक बार
धीरे-धीरे रूचि बढी
तब सडक किनारे बिकने वाले गुलशन नन्दा का उपन्यास भाया
तब तक समय बदला
काॅलेज पहुँच चुके थे
तब साहित्यकारों से परिचय हुआ
यही पर शरदचंद्र चट्टोपाध्याय की देवदास पढी
चंद्रधर शर्मा की हिन्दी की पहला कहानी
उसने कहा था पढी
प्रेम क्या होता है बिना बोले और छुए भी
पंत जी का छायावाद की कविताएं पढी
गुप्त जी की साकेत और प्रसाद की कामायनी से परिचय हुआ
रामचन्द्र शुक्ल और कामताप्रसाद गुरु जैसे व्याकरण कर्ताओ को पढा
महादेवी जी की
मैं नीर भरी दुख की बदरी से पीडा का परिचय हुआ
चित्रसेन शास्त्री, धर्मवीर भारती ,अज्ञेय ,शिवानी
मृणाल पांडे, मन्नू भंडारी के साहित्य पढे
राहुल संस्कृयान के यायावरी घुमक्कड़ी लेख पढे
नेहरू ,गांधी और टैगोर को
इस तरह पुस्तक और पुस्तकालय से नाता जुड़ा
जो आज तक बरकरार है
पुस्तक से अच्छा कोई साथी नहीं
यह हमारे साथ रोती है हंसती है उदास होती है
समझाती है
पुस्तकों से जिसने प्रेम कर लिया
वह फिर कभी अकेला नहीं होता
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