Sunday, 10 April 2022

जय श्री राम

*सुंदरकांड में एक प्रसंग अवश्य पढ़ें !*
*“मैं न होता, तो क्या होता?”*
“अशोक वाटिका" में *जिस समय रावण क्रोध में भरकर, तलवार लेकर, सीता माँ को मारने के लिए दौड़ पड़ा*
तब हनुमान जी को लगा कि इसकी तलवार छीन कर, इसका सिर काट लेना चाहिये!
किन्तु, अगले ही क्षण, उन्होंने देखा 
*"मंदोदरी" ने रावण का हाथ पकड़ लिया !*
यह देखकर वे गदगद हो गये! वे सोचने लगे, यदि मैं आगे बढ़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि
 *यदि मैं न होता, तो सीता जी को कौन बचाता?*
बहुधा हमको ऐसा ही भ्रम हो जाता है, *मैं न होता तो क्या होता* ? 
परन्तु ये क्या हुआ?
सीताजी को बचाने का कार्य प्रभु ने रावण की पत्नी को ही सौंप दिया! तब हनुमान जी समझ गये,
 *कि प्रभु जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं!*
आगे चलकर जब "त्रिजटा" ने कहा कि "लंका में बंदर आया हुआ है, और वह लंका जलायेगा!" 
*तो हनुमान जी बड़ी चिंता मे पड़ गये, कि प्रभु ने तो लंका जलाने के लिए कहा ही नहीं है*
और त्रिजटा कह रही है कि उन्होंने स्वप्न में देखा है, 
*एक वानर ने लंका जलाई है! अब उन्हें क्या करना चाहिए? जो प्रभु इच्छा!*
जब रावण के सैनिक तलवार लेकर हनुमान जी को मारने के लिये दौड़े, 
*तो हनुमान ने अपने को बचाने के लिए तनिक भी चेष्टा नहीं की* 
और जब "विभीषण" ने आकर कहा कि दूत को मारना अनीति है, तो
 *हनुमान जी समझ गये कि मुझे बचाने के लिये प्रभु ने यह उपाय कर दिया है!*
आश्चर्य की पराकाष्ठा तो तब हुई, जब रावण ने कहा कि 
*बंदर को मारा नहीं जायेगा, पर पूंछ में कपड़ा लपेट कर, घी डालकर, आग लगाई जाये* 
तो हनुमान जी सोचने लगे कि लंका वाली त्रिजटा की बात सच थी, 
*वरना लंका को जलाने के लिए मैं कहां से घी, तेल, कपड़ा लाता, और कहां आग ढूंढता?* 
पर वह प्रबन्ध भी आपने रावण से करा दिया! जब आप रावण से भी अपना काम करा लेते हैं, तो
 *मुझसे करा लेने में आश्चर्य की क्या बात है !*
इसलिये *सदैव याद रखें,* कि *संसार में जो हो रहा है, वह सब ईश्वरीय विधान* है! 
हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं! 
इसीलिये *कभी भी ये भ्रम न पालें* कि...
*मैं न होता, तो क्या होता ?*

ना मैं श्रेष्ठ हूँ,
*ना ही मैं ख़ास हूँ,*

मैं तो बस छोटा सा,
*भगवान का दास हूँ॥*

🚩👏जय सियाराम🚩👏
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