न तू एकदम अच्छी है
न तू एकदम बुरी है
वक्त आने पर अपने जलवे दिखाती रहती है
कभी खुशी के कभी गम के
एक पल रूलाती है
दूसरे ही पल हंसाती भी है
कभी ऐसा लगता है
सब कुछ खत्म
तब ऐसा कुछ कर जाती है
फिर जीने का जज्बा सिखा जाती है
मौसम की तरह तू भी बदलती रहती है
मौसम का तो कुछ वक्त भी होता है
तेरा तो कोई नहीं
कभी तूफान - बरसात
कडकती बिजली
सब कुछ ध्वस्त
सारे सपने खाक
तब अचानक गुलाबी धूप खिला देती है
तू कब तक साथ देंगी
कब बीच मंझधार में ही छोड़ चल देगी
यह भी तो अनिश्चित है
इसी अनिश्चितता के मध्य
हम डोलते रहते हैं
तू मजे लेकर देखती रहती है दूर से
तुझे तो सब पता होता है
तब भी अंजान बनी रहती है
तेरे दांव पेंच का खेल कोई नहीं जान पाता
कब किस को
राजा , रंक , वजीर बना दे
अपनी चाल चलती रहती है
ताउम्र हमें नचाती है
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