मन जहरीला हो
ईष्या और द्वेष से भरा हो
तब उसका कार्य सही कैसे होगा
साफ मन ही नहीं है तब
अगर भोजन भी सही मन से नहीं बना होगा
तब वह खाने वाले पर भी वैसा ही प्रभाव डालेगा
यह मनोवैज्ञानिक तथ्य है
तब द्रोणाचार्य के शिष्य इससे क्यों नहीं प्रभावित होते
जिस आदमी का उद्देश्य ही बदला लेना हो
अपने शिष्यों से गुरू दक्षिणा के रूप में बदला मांगा
अपने मित्र राजा दुपद्र द्वारा किए अपमान को वे भूले नहीं थे
उन्हें बंदी बनाने का आदेश दिया
बदला भी लिया
दुपद्र भी यह भूले नहीं
उसी का परिणाम याज्ञसैनी द्रौपदी थी
कहा जाता है
द्रोणाचार्य एक बडी नाव में छोटे से छिद्र के समान थे
जो सागर में पूरी नाव को ही ले डुबता है
कौरव - पांडव की उन्हीं के द्वारा शिक्षा दीक्षा हुई थी
एकलव्य से भी उसका अंगूठा मांग लिया
उनकी शिक्षा बंधक थी कौरव साम्राज्य में
किसी और को शिक्षा नहीं दे सकते थे
गुलामी और ईष्या से भरा व्यक्ति
अपने शिष्यों से क्या अपेक्षा करता
महाभारत होने का एक कारण ये भी थे
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