आने वाले कल का
भविष्य का भविष्य के गर्भ में पता नहीं क्या छिपा है
सोचा हुआ होता नहीं
मनुष्य सोचता क्या है
होता क्या है
आशा और निराशा
इसी के भंवर में चक्कर लगाते रहते हैं
जब होना वही है जो भाग्य में है
तब हम क्यों सोचते हैं
कुछ भी अपने आप तो नहीं होता न
हम ऊपरवाले के हाथ की कठपुतली है जरूर
लेकिन हाथ - पैर तो हमें ही मारना है
बैठ रहने से हम तो पूरी तरह बैठ ही जाएंगे
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