कल यानि बीती रात खूब जोरो का तूफान उठा
अंधड चला बिजली कडकी
जोरो की बरसात भी हुई
सब कुछ भीग गया
बाहर रखी लकडी की चौकी
अरगनी पर टंगे हुए कपड़े
गेहूं पसारा हुआ था
और न जाने क्या क्या
सुबह फिर धूप खिली
सब फिर सूख गया
लेकिन एक अजीब सी गंध छोड़ गया
वह ताजगी नहीं दिखी
जो सूखे हुए कपडों में होती है
सूखी लकड़ी में होती है
सीलन वाली गंध बरकरार थी
यही बात तो संबंधों में भी लागू होती है
जख्म लगा हो
वाणी के तीर चले हो
तानों के खंजर खोपे हो
भरी जमात में जम कर मजाक उड़ाया गया हो
बात बात में नीचा दिखाया गया हो
तब वैसे संबंध में ताजगी की अपेक्षा करना
घाव भर तो जाता है
निशान नहीं मिटता
वह तो छोड़ ही जाता है
फिर पहले वाली बात तो नहीं रहती
कितना भी मरहम लगाने की कोशिश हो
वह तो नहीं मिटने वाला
सीलन , संडाध और निशान तो रह ही जाएंगे
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