गरल को गले से नीचे उतारा है
तब जाकर अमृत प्राप्त हुआ है
अब तो यह रास नहीं आ रहा
समय पर नहीं मिला
अब उसका क्या लाभ
समय पर ही सब शोभा देता है
समय गुजर जाने पर नहीं
जब बचपन जीना था तब वह नहीं मिला
जवानी जीना था वह भी दब कर रह गया
अब तो जीवन की साँझ है
वैसे ही लाचार और मजबूर है
उसमें इतना जोश कहाँ
वह तो पहले से ही दबा और झुका हुआ
कभी-कभी ऐसा भी होता है
ऊपरवाले की कृपा से प्राप्त तो सब होता है
कर्म और भाग्य का मिश्रण
पर तब तक समय जा चुका होता है
गुजरा हुआ तो दोबारा लौटेगा नहीं
न पीछे मुड़कर देखेगा
तब वह पहले जैसी वाली बात भी नहीं रहती
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