लगता है सोए रहो
न जाने काम करने की इच्छा क्यों नहीं होती
लगता है आराम करो
न जाने व्यायाम करने की इच्छा क्यों नहीं होती
लगता है इसका क्या फायदा
न जाने पढने की इच्छा क्यों नहीं होती
लगता है इससे क्या होगा
न जाने कठिन भक्ति व्रत-उपवास करने का मन नहीं करता
लगता है भगवान का स्मरण ही काफी है
न जाने किसी के लिए कुछ करने का मन नहीं करता
लगता है हमको इससे क्या
हम क्यों सुघड भलाई करे
न जाने किसी गलत को रोकने का मन नहीं करता
लगता है हम क्यों इस पचडे में पडे
सिकंदर ने पौरूष से की थी लडाई तो हम क्या करें
सही भी है
ऐसा अमूमन शायद हर शख्स को लगता होगा
पर वही पाने की बात आए
तब हम सब पाना चाहते हैं
उसको हासिल है मुझे क्यों नहीं
कर्तव्य की कठोर भट्टी में तपना पडता है
तब जाकर निखार आता है
नहीं तो गुजारा तो सबका हो जाता है
अजगर करे न चाकरी
पंछी करे न काम
दास मलूका कह गए
सबके दाता राम
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