Saturday, 7 May 2022

एक फौजी की पत्नी का दर्द

तुम चुपचाप चले गए
हम अवाक हो देखते ही रह गए
न कोई ईशारा
न कोई संकेत
न कोई संदेश
न कुछ कहा 
न कुछ सुना
तुम आओगे 
कुछ दिन की तो बात है
वह कुछ दिन अब कुछ दिन नहीं रहा
वह तो बहुत बडा हो गया है
एक गहरा सन्नाटा लिए हुए
कहीं से कोई आवाज नहीं
कहीं से कोई आहट नहीं
सब चुपचाप हो गया 
हम सोचते ही रह गए
तुम धता दे गए
पता होता 
तब ऐसा न होता
तुमको तो रोक लेती
जिद कर बैठती
पर अलग न होने देती
मैं सावित्री भी तो नहीं बन सकती
जो यमराज से पति को मांग लाई
मैं तो फौजी की पत्नी जो ठहरी
जीने से पहले ही मौत से दोस्ती जो कर ली
जाना ही था 
मुझसे पहले भारत माँ का कर्ज चुकाना था
सात फेरो का वचन तो मेरे साथ था
जीने मरने की कसमे भी मेरे साथ खाई थी
तब मैं क्यों नहीं याद आई थी
मुझसे मेरी जान ले गए
मुझे रिक्त कर गए
तुम अमर हो गए
मैं विवश 
तुम चुपचाप चले गए
हम अवाक हो देखते ही रह गए

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