नीम तो वही है बस लोग बदल गए हैं। बरसों से यह खडा है। न जाने कितनी पीढियाँ देखी है ।
तब सुबह नीम की दातून से दिन शुरू होता था ।रात में उसी के पेड़ के नीचे बडे - बूढे सोते थे । दोपहर में बच्चे खेलते थे ।छाया के नीचे खटिया डाल चर्चा।
अब तो टूथपेस्ट और पंखा का जमाना है । जमाना तो बदला है पर नीम नहीं बदला है , वह वैसे ही खडा है मजबूती से जो उसके पास है वह देने के लिए।
यह हम पर है हम क्या लेते हैं ??
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