Tuesday, 10 May 2022

एक पत्नी का संबोधन

सूरज हो तुम मेरे
सूर्य सा तेज है तुममें 
घर में तुमसे ही प्रकाश है
तुम्हारी उपस्थिति से घर में एक नई रोशनी छा जाती है
तुम्हारी खुशी से पूरा घर प्रकाशित हो उठता है
तुमसे से ही तो यह घर 
तुमसे ही तो मेरा सुहाग
तुमसे ही तो मेरे चेहरे पर मुस्कान 
तुमसे ही तो मेरा गुरूर 
तुमसे ही तो घर की रौनक
तुमसे ही तो मेरे चेहरे पर नूर
तुम ही मेरा जग 
तुम ही मेरा संसार 
तुमसे ही तो मेरा असतित्व 
तुम बिन मैं शून्य 
तुम्हारे बिना जी तो लूंगी मैं 
पर वह मात्र शरीर होगा
आत्मा नहीं 
तुम मेरी शान
तुम मेरा अभिमान 
यह सूर्य सदा चमकता रहें 
इसकी रोशनी में, मैं खिलखिलाती रहूँ 
यहाँ वहाँ डोलती फिरूं 
चहकती फिरूं 
ईश्वर से दुआ
तुम सलामत रहो
तुमसे ही मेरा जीवन आबाद

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