Tuesday, 31 May 2022

कभी कुछ कहीं कुछ

मैंने स्वयं को अब तक नहीं जाना
क्या हूँ कौन हूँ  कैसी हूँ 
दशकों गुजर गए
अभी भी मैं उलझन में ही हूँ 
अपने को पहचान नहीं पाई
कोई कुछ कहता है कोई कुछ 
असल में मेरा स्वभाव कैसा है
मेरी फितरत कैसी है
कहीं मैं डरपोक तो कहीं निडर
कहीं दयालु तो कहीं कठोर
कहीं दब्बू तो कहीं दबंग
कहीं मैं खुशमिजाज तो कहीं दुखी
कभी ऑखों में पानी कभी होठों पर खुशी
किस बात पर प्रसन्न किस बात पर रुष्ट 
कभी मीठी आवाज तो कभी कर्कश
कहीं कुछ तो कहीं कुछ 
कभी कुछ तो कभी कुछ 
यह क्या दोहरा चरित्र है
दोहरा व्यक्तित्व है
शायद समझने का फेर है
हर जगह भूमिका अलग
हर जगह परिस्थिति अलग 
उनके बीच में यह मन
कभी कौन सी करवट लेता है
यह समझ नहीं आया
कहती कुछ करती कुछ 
करने जाती कुछ होता कुछ 
इसी दो राहें पर चलती जिंदगी 
कब एक निश्चित ठिकाना पर होगी
शायद यह कहना मुश्किल होगा ।


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