चला तो अकेले ही था
कारवां जुड़ता गया
लक्ष्य और मजबूत बनता रहा
मंजिल करीब आती गई
आखिरकार प्राप्त भी हो गई
मुझे नाम मिला सम्मान मिला
यह क्या केवल मेरी उपलब्धि थी
अकेले की
शायद नहीं
उन सब की
जिन्होंने मुझे सहयोग किया
मेरे साथ चले
कठिन घडी में साथ निभाया
एक का तो नाम उसके पीछे न जाने कितने हाथ
सबका आशीष
ईश्वर की कृपा
भाग्य की देन
सब साथ चलते हैं
नहीं तो इस संसार में बहुतेरे लोग हैं
जो गुणों की खान है
लेकिन न उनको कोई जानता न पहचानता
एक बात कभी न भूलने चाहिए
अकेले तो कुछ भी नहीं होता
लगता भले हैं
पर सोचो तो जरा
तब समझ आ जाएंगा ।
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