पहले भी वही लोग
वही जगह
पर ऐसा तो न था
कोई किसी की ताई
कोई किसी की भौजी
कोई किसी की बेन
कोई किसी की खाला
कोई किसी की आंटी
सब अपने से लगते थे
पूरनपोली
कचौरी
ढोकला
सिवैया
केक
सबके स्वाद भी अपने घर के लगते थे
अब वह बात नहीं रही
अब तो व्यंग के सिवा और कुछ नहीं
नजरिया बदल गया
अब प्रेम नहीं वैमनस्य ने घर कर लिया है
अब पडोसी नहीं
प्रांतीय और धार्मिक
अब वह होली और दीवाली
गणेशोत्सव , क्रिसमस और ईद
की रौनक पहले जैसे नहीं
त्योहार तो वही
पर हम बदल गए हैं
सोच बदल गई है
भाईचारे की भावना गायब हो गई है
चाॅल संस्कृति की जगह फ्लैट संस्कृति ने ले ली है
जहाँ सब अपने अपने घरों में बंद
प्राइवेसी हो गई है
सामुदायिक भावना तो कब की गायब हो गई है
अब लोग हम से मैं
हो गए हैं
पहले भी वही लोग
वही जगह
पर ऐसा तो न था
No comments:
Post a Comment