#कर्मयोगी
कृष्ण होना सरल है क्या?
माता को मातृत्व का सर्वोच्च सुख देना, फिर भी मोह में लिप्त न होना.
पिता को उज्वल और सुरक्षित भविष्य का स्वप्न दिखाना, साकार करना पर मोह में लिप्त न होना. ईश्वरीय अंश हो कर दरिद्रतम लोगों से भी मित्रता कर लेना, बिना किसी भेद के, भरपूर प्रेम देना, पर मोह में लिप्त न होना. प्रेयसी को इतना प्रेम करना कि उदाहरण बन जाए, पर मोह में लिप्त न होना...
क्यों? ये सब सुख ही तो थे न. पर पल में त्याग दिया..
यही तो उनको मनुष्य होते हुए भी ईश्वर कर गया न कि कर्तव्य सर्वोपरि है. जब बात धर्म और समाज की रक्षा और उत्थान की हो तो बड़े से बड़े व्यक्तिगत सुख को तिलांजलि देनी पड़ती है. अपने हिस्से के सुख का त्याग ही तो राम को राम कर गया और कृष्ण को कृष्ण.
हम वही देखते और सीखते हैं जो चाहते हैं. सबने रास तो देखा. त्याग नहीं सीखा. त्याग और विछोह में भी संतुलित रहना नहीं सीखा.. राम भी सीता के विछोह में संतुलन खो बैठे थे. पर कृष्ण ने यशोदा, गोकुल, राधा, मित्रों के विछोह का दर्द भी अपनी मुस्कान में अवशोषित कर लिया.
अपने लोगों की जान बचाने के लिए रणभूमि छोड़ दी. पता था कि रणछोड़ कहा जाएगा. यश का मोह नहीं किया.
भव्यतम द्वारिकापुरी बसाई. पर स्वयं गद्दी पर नहीं बैठे. सत्ता का मोह नहीं किया.
वो मोड़ भी जीवन में आया जब अपनी खुद की सेना और सेनापति कौरवों की तरफ खड़ी थी. और खुद पांडवों की सेना में सारथी की भूमिका में थे.
द्वारिकाधीश और सारथी! विश्व का सर्वाधिक महान योद्धा और शस्त्र न उठाने का प्रण! पर उनको अपने ओहदे से बहुत निचले स्तर का कार्य सहर्ष स्वीकार था, क्योंकि संसार का कल्याण उनके सारथी होने में निहित था.
(बाणासुर से युद्ध में जब कृष्ण ने बाणासुर को युद्ध में परास्त कर दिया तो उसने मदद के लिए शिव का आवाह्न किया. शिव वचन बद्ध थे तो उन्होंने ने श्री कृष्ण से युद्ध किया. दोनों के मध्य भयानक संग्राम हुआ जिसमें कृष्ण विजयी हुए. और फिर शिव ने बाणासुर को कृष्ण के नारायण होने से अवगत कराया. अर्जुन, परशुराम और आचार्य द्रोण के अतिरिक्त संसार में बस वो ही चक्रव्यूह भेदन जानते थे. अभिमन्यु के गुरु वही थे. सिर्फ सुदर्शन चक्र ही नहीं कृष्ण अभूतपूर्व धनुर्धर भी थे)
कृष्ण की मुस्कान जीवन की सभी पहेलियों का उत्तर है. या यूँ कहूं कि उनकी मुस्कान ही तो जीवन है. जिन परिस्थितियों में दृढ़तम मनुष्य भी जीवन का ही त्याग कर दे उसमें भी उनकी मुस्कान ने चेहरे का साथ नहीं छोड़ा..
निष्काम कर्म की शिक्षा सिर्फ गीता के रूप में ही नहीं दी अपितु अपने हर कर्म से, जीवनशैली से निष्काम कर्म को जी कर दिखाया.
सबमें रमते हुए भी जो न रमे, सबको अथाह प्रेम दे कर भी जो मोह में लिप्त न हो, वही तो हैं कृष्ण.
अवसाद और उल्लास में जो सामान रहे, वही तो हैं श्री कृष्ण.
मोह शत्रु है और प्रेम ईश्वर, ये भेद जो समझा दे वही तो हैं कृष्ण.
अन्याय का सर्वत्र प्रतिकार करे, वही तो हैं कृष्ण.
कहाँ तक नैतिकता का पालन करना है और किस सीमा के बाद मूल्यों को त्याग कर धर्म की रक्षा करनी है, इसका उदाहरण ही तो हैं कृष्ण.
मानवमात्र के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दे, वही तो हैं कृष्ण.
तो कृष्ण सरल कदापि नहीं हैं. खुद को उनसे रिलेट करने का प्रयास व्यर्थ है. हम में से किसी के अंदर कृष्ण का एक अंश होने की भी क्षमता नहीं..
हाँ कृष्ण "सुलभ" हैं.. पुत्र, पिता, प्रेमी, पति, मित्र, भगवान कुछ भी बना कर उनको पूज सकते हैं.. वो निराश नहीं करते. जो जिस रूप में भजता है उसको उसी रूप में मिलते हैं. (जामवंत जी को राम रूप में दर्शन दिए थे)
जगद्सारथि के चरणों में श्रद्धा सुमन.
बस योगेश्वर का हाथ मेरे और सभी के सिर पर बना रहे.. 🙏
🚩🙏जय श्री कृष्णा जी
COPY PASTE
No comments:
Post a Comment