हम भी मेहमान थे
एक फर्क यह था
वे बडे ओहदे वाले थे
संपत्ति शाली थे
हम कहाँ साधारण लोग
जब वे आए हमारे घर
हमने खूब खातिरदारी की
आवभगत और खुशी से स्वागत किया
जाते समय भी तोहफे दिए
अपने को धन्य समझे
कि वे हमारे घर आए
हम जब उनके घर गए
न चेहरे पर उत्साह और खुशी
ऐसे लगा जैसे अंजानो के बीच आ गए
खातिरदारी भी सामान्य सी
कुछ विशेष नहीं
ऐसा लगा कि
आना नहीं भाया
बुरा लगा
अचानक विचार आया
सब स्टेट्स का फर्क है
वे आए तो तुमने उनकी स्टेट्स के अनुरूप किया
तुम गए तो तुम्हारी हैसियत के अनुसार तुम्हारा
ऐसा होना कोई असामान्य बात नहीं है ।
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