Monday, 20 June 2022

धरती और आकाश

धरती धैर्य वान है
वह सब कुछ सहती है
उसी की गोदी में सब कुछ 
खेलते भी हैं 
उपयोग भी करते हैं 
गंदा भी करते हैं 
वह कुछ नहीं कहती 
जब तक कि पानी सर से ऊपर न चला जाएं 
जब क्रोध में कांपती है जरा सी
तब तो भूकंप आना निश्चित है
सब नष्ट-भ्रष्ट हो जाता है
ऐसे ही औरत जो माता भी है
संतान के लिए हर कुछ कर गुजरती है
उसकी कोई सीमा नहीं 

आकाश शान से खडा है
बादल आते हैं 
उमडते घुमडते हैं 
कभी बरसते कभी नहीं 
बिजली कडकती है 
कुछ समय के लिए डर
फिर बात आई-गई 
पिता वैसा ही प्राणी है
गरजता है बरसता है
शांत हो जाता है
एक डर रहता है मन में 

धरती के पास सब
उससे लोग जुड़े हुए 
आसमां तो दूर है 
बहुत ऊपर
वह बस निहारता है
वाच करता है
छत तो उसी से है
जब तक वह 
तब तक सब निश्चिंत विचरण करते हैं 
ऐसे ही तो होते है
हमारे माता और पिता 

No comments:

Post a Comment