झम झमा झम वाली
कभी इसी बारिश में भीगने के लिए दिल मचलता था
सर पर छतरी तो दिखावा मात्र
सर से पैर तक पूरा भीगने हुए
सहेलियों संग समुंदर किनारे
बारिश में अठखेलियां करती लहरें
उफान मारती और फिर लौट जाती
घंटों किनारे खडे या बैठे मंत्र मुग्ध निहारते
वह समय था युवावस्था का
काॅलेज के दिनों का
आज भी बारिश तो वैसे ही है
हम अवश्य बदले हैं
अब भीगने का मन नहीं करता
बारिश में कीचड़ और गंदे पानी में उतरने का मन नहीं करता
काम बढ जाएंगा
तबियत खराब हो जाएंगी
जल भराव हो जाएंगा
इससे तो भले अपने घर में
खिड़की पर बैठ कर चाय की चुस्कियां लेते हुए
फर्क है न
बचपन की मासूमियत में
जहाँ कीचड़ में थप थप करते थे
युवावस्था में जहाँ घंटों भीगते थे
बिना बेपरवाह होकर
अधेडावस्था में जहाँ
कार्यालय से घर पहुँचने की भागम-भाग
ट्रेन और बस पकडने की जद्दोजहद
अब आया वृद्धावस्था
जहाँ घर से ही बारिश का आनंद
जीवन का पडाव
कोई भी हो
बरसात की तो बात ही निराली है
यह हमेशा सबको भायी है
इसलिए तो यह सब पर भारी है ।
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