हमने आम, महुआ , नीम ,बेल , बबूल जैसे पेड़ों को देखा है
आम के पेड़ पर चढ कर और पत्थर मार आम गिराए हैं
नीम की नीबौली का स्वाद चोखा है
महुआ को बीन कर उठाया है
बबूल का कांटा पैरों से निकाला है
बेल , बैर ,इमली, अमरूद , तूत, और न जाने क्या-क्या
मक्के और मटर की बालियो को तोड़कर और भूनकर खाना
गन्ना तोड़ कर चूसना
गुड बनने पर गर्म गर्म गुड खाना जिसके सामने मिठाई भी फीकी
सावा ,कोदो जैसे भात को खाया है
ज्वार - बाजरे और मक्के की मोटी रोटी खाई है
अरहर और गेहूं के खेत में दौड़ लगाई है
आज वह समय नहीं रहा
अब वह नजारा दिखाई नहीं देता
अब तो बासमती - काला नमक जैसे चावल और अलग-अलग तरह के गेहूं के पौधे बस दिख जाते हैं
बगीचे तो रहे नहीं जो बचे - खुचे पेड़ हैं वह भी कांटे जा रहे हैं
पहले वाले लगाते थे
आज वाले काट रहे हैं
हमारे पूर्वज तो हमें यह सब दे गए
हम तो वह भी छीन रहे हैं देने की बात तो दूर
प्राण वायु भी छीन रहे हैं
तालाब - पोखरों और कुएँ को पाट रहे हैं
दरवाजे पर बैलों का जोड़ा तो खत्म ही अब गाय भी रखने से कतरा रहे हैं
कौन मेहनत करेंगा
चारा - पानी देना भारी है
गऊ माता को लावारिस छोड़ दे रहे हैं
क्योंकि ये अब हमारे काम के नहीं रहें
बस एक अच्छा सा घर बना रहे हैं
अपनी हैसियत इसी से दिखा रहे हैं
हैसियत बनाते बनाते दूसरों का असतित्व मिटा रहे हैं
स्वार्थी तो हम हमेशा से रहे हैं
अपने लिए न जाने क्या क्या किया
लेकिन अंजाने में या जान - बूझ कर अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं
अपनी अगली पीढ़ी को ऐशो-आराम देने की कोशिश करते करते प्राण वायु ही छीन रहे हैं।
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